आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridaya Stotra PDF FREE

Aditya Hridaya Stotra PDF: आदित्य हृदय स्तोत्र, एक प्राचीन हिंदू पौराणिक स्तुति है जो सूर्य देव को समर्पित है। यह पाठ भगवान सूर्य के शक्ति और प्रकाश को वर्णन करता है और यह प्राय: आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति के लिए जाना जाता है।

Aditya Hridaya Stotra PDF FREE
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आदित्य हृदय स्तोत्र का महत्व (Significance of Aditya Hridaya Stotra)

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से श्रद्धालु को मानसिक शांति, शक्ति और आत्म-समर्पण की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र सूर्य देव के आदित्य स्वरूप की महत्वपूर्णता को व्यक्त करता है और उसके दिव्य विशेषताओं का स्मरण करने में मदद करता है।

पीडीएफ के माध्यम से आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra through PDF)

आजकल, तकनीकी उन्नति के साथ, आदित्य हृदय स्तोत्र की पीडीएफ संस्करण आसानी से उपलब्ध है। व्यक्तिगत साधना और आध्यात्मिक विकास के लिए इस स्तोत्र को पीडीएफ के रूप में डाउनलोड करके आप आसानी से पठ सकते हैं।

स्तोत्र की महत्वपूर्ण श्लोक (Important Verses of the Stotra)

  1. “आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्” – इस श्लोक में सूर्य हृदय स्तोत्र के पुण्यत्व और शत्रुओं के नाश की महत्वपूर्णता का वर्णन है।
  2. “सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके” – इस श्लोक में माता दुर्गा को प्रसन्न करने और सभी आर्थिक और आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।

सूर्य देव के गुण (Qualities of Lord Surya)

सूर्य देव को वेदों में विभिन्न गुणों से संबोधित किया गया है। उनकी प्रकृति, शक्तियों, और महत्व का वर्णन करते समय हम उनके दिव्य स्वरूप को समझते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ (Benefits of Aditya Hridaya Stotra)

  1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: यह स्तोत्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करता है।
  2. आध्यात्मिक विकास: इस स्तोत्र के पाठ से आध्यात्मिक विकास होता है और आत्मा की उन्नति होती है।
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आदित्य हृदय स्तोत्र | Complete Aditya Hridaya Stotra

विनियोगः

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः , आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा

देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः ।।

ध्यानम्- संस्कृत 

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,

जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,

त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,

विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।

 रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । 

उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।

 येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । 

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । 

चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । 

पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।

 एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । 

महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । 

वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । 

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । 

तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽकों शुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।

 अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । 

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। 

कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । 

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । 

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । 

नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।

 नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।

 भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।

 कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

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तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । 

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । 

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । 

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।

 यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

 कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।

 एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । 

एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥

 धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । 

त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । 

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।

 निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

।।सम्पूर्ण ।।

निष्कलंक सूर्य (Flawless Sun)

सूर्य देव को निष्कलंक और पवित्र माना जाता है। उनकी दिव्यता और प्रकाश हमें आदर्श जीवन की ओर प्रेरित करते हैं।

पाठ की विधि (Method of Chanting)

आदित्य हृदय स्तोत्र को पूजा और ध्यान के समय पाठ किया जा सकता है। यह स्तोत्र सच्चे मन से और भक्ति भाव से पठने से अधिक प्राप्ति होती है।

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समापन (Conclusion)

आदित्य हृदय स्तोत्र एक शक्तिशाली पाठ है जो सूर्य देव की महिमा और दिव्यता का प्रतीक है। इस स्तोत्र के पीडीएफ रूप को डाउनलोड करके आप आध्यात्मिक उन्नति की ओर एक कदम आगे बढ़ सकते हैं।

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FAQs

  1. क्या आदित्य हृदय स्तोत्र को रोज़ाना पढ़ना चाहिए?

    जी हां, आदित्य हृदय स्तोत्र को रोज़ाना पढ़ने से आपके जीवन में पॉजिटिव बदलाव आ सकता है।

  2. क्या इस स्तोत्र का कोई विशेष समय होता है?

    हां, सूर्योदय के समय इस स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक लाभ होता है।

  3. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से सूर्य देव के आशीर्वाद मिलते हैं?

    जी हां, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से सूर्य देव के आशीर्वाद प्राप्त हो सकते हैं।

  4. क्या यह स्तोत्र केवल हिन्दू धर्म के लोगों के लिए है?

    जी नहीं, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कोई भी व्यक्ति कर सकता है जो आध्यात्मिक उन्नति की तलाश में है।

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